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Dantewada Tourism

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Shri Om Kumar Soni

Asst. Professor

दंतेवाड़ा जिले में मंडई मेलो की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत

बस्तर के जनजातियों में देवी देवताओं की संस्कृति सबसे अलग है। यहां देवी देवताओं को पेन के रुप में अर्जी की जाती है। ये पेन इनके पूर्वज होते हैं जिनके चलायमान प्रतीक होते हैं जो काष्ठ या धातु से निर्मित होते हैं। इसके अतिरिक्त ग्राम ग्राम के विभिन्न देवी या देव होते हैं जो आदिवासी संस्कृति का सबसे प्राचीन अंग है।  गांवो में इनकी देव गुड़ी होती है जिसमें ये देव प्रतीक विराजित रहते हैं।  जहां वर्ष भर होने वाले त्यौहार और अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।

कृषि कार्य और प्राकृतिक उपजो के संग्रहण आदि से मिला मेहनताना का अंश अपने इन पेन पुरखो और ग्राम देवी देवताओं को अर्पित करने का पर्व छोटे स्तर में जतरा और बड़े स्तर पर मंडई कहलाता है।अगहन मास में दंतेवाड़ा में देवी शीतला माता के अगहन जतरा से मंडई जतरा का पुरे बस्तर में आगाज हो जाता है। ग्राम देवी के सम्मान में ग्रामीण अपनी कमाई का छोटा सा अंश भेंट करता है। मनौती आदि पूर्ण होने पर बकरा मुर्गा बतख आदि की बलि चढ़ाकर सामुहिक रूप से प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

दंतेवाड़ा के अगहन जतरा से गांव गांव में जतरा प्रारंभ हो जाते हैं। जतरा के बाद मंडई मेलों की शुरुआत होती है। यहां प्रत्येक परगना में आदिवासियों के गोत्र का मुख्य देव होता है जिसका अपना एक संसार होता है। उस देव के पत्नी, भाई, बेटा, बेटी , बहन, आदि रिश्ते के देवी देवताओं की पारिवारिक दुनिया होती है। वर्ष में एक दिन गोत्र के इन सभी देवताओं को एक निर्धारित स्थल में लाकर इनका सामूहिक रूप से पूजा अनुष्ठान एवम पेन अर्जी की जाती है, इसे यहां करसाड़ कहा जाता हैं।

बस्तर के दंतेवाड़ा जिले का घोटपाल करसाड़ मुरिया आदिवासियों की सदियों पुरानी संस्कृति का जीवंत उदाहरण है। घोटपाल में मुरिया जनजाति के लोक देवता उसेन मुईतोर की देवगुड़ी स्थित है। इस देवगुड़ी में उसेन मुईतोर के प्रतीक आंगा विराजमान है।उसेन मुईतोर मुरिया जनजाति के लेकाम या लेकामी गोत्र के देव है। प्रतिवर्ष माघ के महीने में उसेन मुईतोर के सम्मान में करसाड़ आयोजित किया जाता है। माघ महिने के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के पहले मंगलवार को घोटपाल का करसाड़ आयोजित होता है, जिसे घोटूम करसाड़ कहते है।
घोटूम करसाड़ बस्तर के सभी मंडई जातरे एवं करसाड़ में सर्वाधिक लंबे समय तक चलने वाला करसाड़ है। दंतेवाड़ा जिले में घोटूम करसाड़ के बाद ही अन्य ग्रामों के करसाड़ प्रारंभ होते है।

घोटूम करसाड़ के अगले हफ़्ते के मंगलवार को फरसपाल का करसाड़ आयोजित होता है। बैलाडीला की पहाड़ियो की गोद में बसा फरसपाल ढोलकल जैसे विख्यात पुरातात्विक धरोहर के लिए जग प्रसिद्ध है। फरसपाल के देवगुड़ी क्षेत्र में यह करसाड़ देवी गुज्जे डोकरी के सम्मान में आयोजित होता है। इस करसाड़ में भी देवी गुज्जे डोकरी के समस्त वंशज और अन्य रिश्तेदार देवी देवता शामिल होते हैं। घोटुम करसाड़ और फरसपाल के परशुम करसाड़ दोनो में ही पेन अक्कूम, गादी रिकानी जैसी रस्मों का निर्वहन होता है। देव खेलनी की रस्म करसाड़ की मुख्य विशेषता होती है जिसमे देव प्रतीकों को कंधो पर उठाकर नृत्य कराया जाता है।

पूरे बस्तर में सबसे बड़ी मंडई दंतेवाड़ा की फागुन मंडई है। बस्तर की आराध्या मां दंतेश्वरी के सम्मान में प्रतिवर्ष मंडई का आयोजन होता है। यह मंडई बस्तर दशहरा की तरह सर्वाधिक दिनों में विभिन्न रस्मों से सम्पन्न की जाती है। बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर होली त्यौहार तक 40 दिनों तक मंडई की विभिन्न रस्मे निभाई जाती है। इस मंडई में आखेट नाट्य को प्रमुखता से प्रस्तुत किया जाता है। आदिवासियों में आखेट सामूहिकता का परिचायक है यही गुण फागुन मंडई की सारे रस्मो में दिखलाई पड़ता है। लम्हा मार, गौर मार, कोडरीमार जैसे लोक नाट्य को देखने के लिए हजारों आदिवासियों का हुजूम उमड़ता है। मां दंतेश्वरी के सम्मान हजार से अधिक देवी देवताओं के प्रतिक उपस्थित होकर मंडई में भाग लेते हैं।

महा शिवरात्रि के अवसर पर समलूर ग्राम में देवी तपेश्वरी के सम्मान में छोटी मंडई का आयोजन प्रतिवर्ष होता है। आसपास के ग्रामों के देवी देवता इस मंडई में शामिल होते हैं। समलुर के जिया बाबा देवी तपेश्वरी के छत्र को लेकर देव स्थल की परिक्रमा करते हैं। देवी के सम्मान में नृत्य करते सिराहाओ को लोमहर्षक दृश्य रोमांचित कर देता है।

इसके अतिरिक्त बारसूर मार्ग में उपेट, हितामेटा, बेंगलूर भटपाल , बीजापुर मार्ग में छोटे तुमनार, गीदम, कटेकल्याण, कारली, बड़े सुरोखी, गोंदपाल, समलवार, पालनार, मैलावाड़ा की मंडई दर्शनीय है। इन क्षेत्रों में स्थानीय देवी देवताओं के सम्मान में मंडई होती है।  अगहन में दंतेवाड़ा का जतरा, फिर गीदम का शीतला माता जतरा, घोटपाल मंडई, फरसपाल मंडई हितामेटा, उपेट, उदेनार बेंगलूर, दंतेवाड़ा की फागुन मंडई, समलूर, कटेकल्याण, पालनार इस क्रम में दिसंबर से लेकर अप्रैल मई माह तक मंडई करसाड़ आयोजित होते हैं।

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