Dantewada Tourism

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दन्तेवाड़ा क्षेत्र में दियारी तिहार (दीपावली त्यौहार) की परम्परा

बस्तर क्षेत्र में निवासरत आदिम समुदायों में प्रत्येक तीज त्यौहार हेतु अपने ईष्टदेव अथवा आदिपुरुषों के लिए विशेष विधान निश्चित है, जो इसे सांस्कृतिक धरोहर के रुप में अन्य क्षेत्रों से पृथक महत्त्व प्रदान करता है। कार्तिक मास में देशभर में मनाए जाने वाले दीपावली त्यौहार को बस्तर में दियारी तिहार अथवा द

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मुनगा जलप्रपात

प्रकृति की गोद में बसा  दक्षिण बस्तर दंतेवाडा जिला अपने अन्दर अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हुए है जिसकी अनुभूति आप यहाँ आकर ही महसूस कर सकते हैं।  हरे भरे वन, पहाड़ नदी-नालों के अलावा यहाँ बहुत से झरने और जलप्रपात हैं जिसमे ऊंचाई से गिरती स्वच्छ, धवल कलरव करती उन्मुक्त  जलधारा का प्राकृतिक सौन्दर्

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समन्वय क्षेत्र दन्तेवाड़ा - इतिहास के आईने में अस्तित्व की तलाश

मानव सभ्यता के उदगम स्थलों में एक है भारत। इसी भारत का एक अभिन्न अंग है छत्तीसगढ़ राज्य का दन्तेवाड़ा जिला। छत्तीसगढ़ क्षेत्र जिसे हम दक्षिण बस्तर मे नाम से जानते है, दन्तेवाड़ा जिला कहलाता है। यह एक नया जिला है जो बस्तर जिले का विभाजित कर बना है। जिस प्रकार नवजात षिषु अपने जीवन के प्रारंभिक काल में अपने भावी

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दन्तेवाड़ा जिले का ऐतिहासिक परिदृष्य

छत्तीसगढ राज्य के निर्माण के बाद से छत्तीसगढी चेतना के स्वर का जागृत होना स्वाभाविक ही था, क्यांकि पृथक राज्य के रूप में अस्तित्वमान होने के कारण इस राज्य के लोगों में अपनी अस्मिता अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक चेतना के प्रति आकर्षण तथा विष्व मानचित्र पर अपनी विरासत से दुनिया को पहचान करान

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शहीद रोड्डा पेद्दा दादो

जीवन परिचय (जन्म :02-05-1854,मृत्यु :07-11-1910)

कवासी रोडापेड़ा का जन्म 02 मई सन् 1854 को गढ़या नामक गांव में हुआ था। गढ़या आगे चलकर गढ़मिरी के नाम से जाना जाता है जो कि चौरासी गांव परगना कुआकोण्डा (मूल नाम पालोट) का मुंडी गांव के नाम से जाना जाता है। इनके पिता का नाम कवासी गंगा एवं माता का नाम हिड़मे है। माड़िया ज

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दंतेवाड़ा जिले में मंडई मेलो की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत

बस्तर के जनजातियों में देवी देवताओं की संस्कृति सबसे अलग है। यहां देवी देवताओं को पेन के रुप में अर्जी की जाती है। ये पेन इनके पूर्वज होते हैं जिनके चलायमान प्रतीक होते हैं जो काष्ठ या धातु से निर्मित होते हैं। इसके अतिरिक्त ग्राम ग्राम के विभिन्न देवी या देव होते हैं जो आदिवासी संस्कृति का सबसे प्राचीन

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पुरातन इतिहास और स्थापत्य की नगरी है बारसूर

बारसूर बस्तर ही नहीं वरन छत्तीसगढ़ का सबसे मुख्य पुरातात्विक स्थल है। दंतेवाड़ा जिले में इंद्रावती नदी के तट पर बसा बारसूर इतिहास पुरातत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति का अनूठा संगम है। यहां के कण कण में बस्तर के अनजाने इतिहास की गाथाएं मौजूद है जिन्हे कभी सुना ही नहीं गया, कभी कहा ही नहीं गया। यहां के

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